ओ अरूणाचलशिव! कुचलदो ये "मैं और मन"..
अनहद थक चुका..पूरा तूट चुका..
मनके भार तले दब गया.. धूत्कार से सहेम गया ।
अब सहनेके पार है ये अहंकारी जीवन..
ओ अरूणाचलशिव! कुचलदो ये "मैं और मन" ॥
युगों से मैं भटक रहा.. ईच्छाओंसे चहेक रहा..
मैंने रचाया जाल ये.. ऊसीमे मैं बहेक रहा ।
बाँवरा बन गया मैं खो गया निज-स्मरण..
ओ अरूणाचलशिव! कुचलदो ये "मैं और मन" ॥
कर्मों का भार ढ़ो रहा.. मैं ज़ार ज़ार रो रहा..
तील तील मैं मर रहा.. मैं तार तार हो रहा ।
करूणासभर ह्रदयसे न होती अब ठोकरें सहन..
ओ अरूणाचलशिव! कुचलदो ये "मैं और मन" ॥
गुरू रमणा!! छातीसे लगा लो.. संसार का सब भान भुला दो..
चीत्कार मेरी अब तो सुन लो.. आत्माकी माला में बुनलो ।
नेत्रों की अनुकंपासे धो डालो ह्रदय-दर्पण..
ओ अरूणाचलशिव! कुचलदो ये "मैं और मन" ॥
॥ॐ रमणार्पणमस्तु ॥
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